गुजर रही है…
August 2, 2015 Leave a comment
सभी दोस्तों के लिए जो मेरे दिल के करीब हैं…
गुज़र रही है जिंदगी,
दूर और कभी करीब से।
कमा लेते हैं खासा,
फिर भी हैं गरीब से।
भरी जेठ की दुपहरी,
ठिठुरती पूस की ठण्ड।
महफ़िलें थी जमा करती,
बैठ अपने यारों के संग।
हर रोज एक नया खेल,
कितना सब थे झगड़ते।
सीटियों के इशारों से,
दोस्त हमें बुलाया करते।
कल की हमे फ़िक्र कहाँ,
आज में जीना था आता।
बहुत से ऐसे भी थे जिन्हें,
रोज चेहरा नया भाता।
फिर एक रोज ये सुना,
की अब हम बडे हो गए,
जिंदगी की कश-म-कश में,
खुद से ही कहीं खो गए।
वो दिन पल लौटकर,
अब कभी ना आएंगे।
ऐ जिंदगी हार न मानेंगे,
लड़ते यूँही हम जाएंगे।