प्रेम का धागा…
February 13, 2016 2 Comments
प्रेम का वो धागा
जिसे में अब तक
संजोये बैठा था
आज उसे खोलता हूँ।
मेरे हर हठ व् बंधन से
तुम अब मुक्त हो
टूट कर चाहा है तुम्हे
इसलिए इतना टटोलता हूँ।
वहीँ रहा मैं खड़ा
दूर तुम निकल गयीं
अपने हर शब्द को अब
तुम्हे कहने से पहले तोलता हूँ।
खुद को तुम व्यर्थ
यूँ ही खर्च ना करो
रोज ही उसके आगे
बहुत देर हाथ मैं जोड़ता हूँ।
मेरे प्रेम से तुम्हारा
मोह भंग यूँ हो जाएगा
सच है नहीं ये बिल्कुल
दिन-रात बस यही सोचता हूँ।
राह जो चुनी तुम ने
खुशियाँ मिलें वहाँ तुम्हें ढेरों
थामने को हाथ ना हो कोई कभी
यहीं मैं मिलूँगा आज फिर बोलता हूँ।
#दिलसे
Nice 🙂
LikeLiked by 1 person
Thank you!
LikeLike