गर्मी की छुट्टियां…
August 31, 2016 1 Comment
मुझे तो बस वो बचपन याद है,
जब गर्मी की छुट्टियों का मतलब सिर्फ गाँव होता था।
सोमनाथ के मेले से एक दिन पहले,
दिल्ली से बस पकड़कर सारा परिवार पहाड़ होता था।
बस अड्डे पहुँचते ही मेरी वो ज़िद्द,
चाचा चौधरी की किताबों के लिए कितना मैं रोता था।
सीटों को घेरने का हुनर बाहर हीे,
हर परिवार में ऐसा कोई न कोई छुपा रुस्तम होता था।
बस चलने का वो बेसब्री से इंतज़ार,
ग़ाज़ियाबाद पार कर खुली हवा का एहसास होता था।
रास्ते में भूख लगती थी सबको जब,
आलू की सब्जी और रोटी में भी गजब स्वाद होता था।
रामनगर से पकड़ना मासी की बस,
भतरोजखान पहुँचने तक मेरा बहुत बुरा हाल होता था।
खड़ा भी बहुत मुश्किल से हो पाना,
लेकिन रायता पकोड़ी खाने को बिल्कुल तैयार होता था।
भिक्यासेन से रामगंगा का बहना साथ,
भुमिया मंदिर देख मासी पहुँचने का एहसास होता था।
वो पुराने लकड़ी के पुल को पार करना,
अब तक बस घर पहुचने को हर कोई बेकरार होता था।
कच्चे टेड़े-मेडे रास्तों की खड़ी चढाई,
गाँव में परिवार के लोगों को भी हमारा इंतज़ार होता था।
चूल्हे की रोटी खेतों में भागना नदी में नहाना,
इन छोटी-छोटी बातों में ही दिन बिताना मज़ेदार होता था।
नानी के घर कुछ दिनों के लिए जाना,
ख़ास मेहमानों की तरह जहां अलग ही सतकार होता था।
पूरे दो महीनों की छुट्टियां बिता देना यूँ ही,
फिर याद आना स्कूल का काम ऐसा हर साल होता था।
अब कहाँ वैसी छुट्टियां और वो बचपन,
फ़िर भी दिल हर छुट्टी में पहाड़ जाने को बेकरार होता है।
Really awesome..Sir
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