दरख़्त…
March 10, 2019 Leave a comment
#दिलसे #DilSe
An expression of my thoughts and writer within….
October 17, 2017 Leave a comment
तुमने देखा है कभी
मेरे ख़्वाबों में उतर के
कभी रातों को मेरी
तुमने भी महसूस किया है
जब मैं अक्सर तुम्हारे
ख़्यालों में ख़ोया होता हूँ
और लोग ये मान लेते हैं
की मैं सोया हुआ होता हूँ
उठता हूँ तुम्हे चूमता हूँ
हथेलियों को तुम्हारी
अपनी हथेलियों में लेकर
अक़्सर नए गीतों में
तुम्हे खोजता हूँ।
#दिलसे
August 27, 2017 2 Comments
मेरी मोहब्बत को कर रुस्वा,
तुमने अलविदा जब कहा था।
एक अनजान सा भँवर था,
जिसे तुमने ख़ुदा कहा था।
वक़्त की आँधियों के बाद,
तुमसे क्यों वो भी जुदा था।
फ़िर मुझसे मिलने आईं तुम,
और मेरा इश्क़ मर चुका था।
तुम चुप थी उस दिन,
पर वो आँखों में क्या था?
#दिलसे
June 30, 2017 2 Comments
कुछ नए ज़र्द से ख़्वाब लिखे हैं इन दिनों
और तुम्हारे सिरहाने तले सब रख छोड़े हैं
पुरानी यादों की बारिश से भीगी हुई वो रातें
और आँखों से किये वादे जो तुमने तोड़े हैं।
मुड़कर उन दिनों को जीने की मेरी कोशिश
और तुमने मेरे लिखे खत भी तो अब मोड़े हैं
मुझे उन अनकहे वादों को निभाने की जिद्द
और तुमने कुछ नए चमकते सितारे बटोरे हैं।
#दिलसे
May 14, 2017 Leave a comment
Long walks down misty mountains
Two of us getting drenched in the rain
Little raindrops making you go insane
Those dreams went down the drain
Though you are not here anymore
But I still keep looking at that door
Waiting for you from dusk to dawn
Don’t know where I have gone!
#DilSe #OtavioPaz
January 20, 2017 Leave a comment
रात भर चाँद झाँकता रहा खिड़की से
और ढूँढता रहा तुम्हे आग़ोश में मेरे,
उसे शायद इस बात की ख़बर नहीं की
अब तुम मेरे ख़्वाबों तक में नहीं हो।
रात भर चाँद पूछता रहा तुम्हारा पता
और देख भर लेने की मिन्नतें करता रहा,
उसे शायद इस बात की ख़बर नहीं की
अब मुझे तुम्हारी कोई ख़बर ही नहीं।
रात भर चाँद भरता रहा सिसकियाँ
और क़तरों से सींचता रहा मेरा दामन,
उसे शायद इस बात की ख़बर नहीं की
अब तुम आँसुओं से दूर ही रहती हो।
रात भर चाँद को समझाया था मैंने बहुत
और तुम्हें भुला देने की नसीहत भी दी,
उसे शायद इस बात की ख़बर नहीं की
अब तुम एक नए आसमान का सितारा हो।
#दिलसे
November 30, 2016 3 Comments
यूँ तो रोज़ ही लिखता हूँ
कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें खींचता हूँ।
शब्दों को शक्ल देने की कोशिश में
ख़्यालों को अपने निचोड़ता हूँ।
कुछ उभरते हुए शब्दों को बांधकर
कलम की स्याही मैं उडेलता हूँ।
कागज़ पर उभरे उन ज़ख़्मी शब्दों को
फिर जब पलट कर देखता हूँ।
तो खुद की रूह का बहता सुर्ख लाल लहू,
एक ज़ख़्मी साये सा लथपथ बड़ा हाथ
मेरी और बढ़ता सा नज़र आता है।
#दिलसे
September 25, 2016 2 Comments
बहुत बेचैनियां सी हैं अजब उदासी घेरे है
तुम्हारी यादों के पल ही बस कहने को मेरे हैं
ढूंढना दिल के कोनों में हर रोज ही तुम को
सोचना याद करते हो क्या तुम भी अब मुझको
पूछते हो मेरे बारे में कई लोगों ने है ये बतलाया
मिलना चाहते हो तुम भी ऐसा एक ख़्याल है आया
ऐसे कई नामुमकिन ख़्वाबों से दिल को है झुठलाया
फिर बहुत मुश्किल से आज ख़ुद को है समझाया
तुम्हारा फ़ोन नहीं आया, तुम्हारा फ़ोन नहीं आया।
#दिलसे
August 31, 2016 1 Comment
मुझे तो बस वो बचपन याद है,
जब गर्मी की छुट्टियों का मतलब सिर्फ गाँव होता था।
सोमनाथ के मेले से एक दिन पहले,
दिल्ली से बस पकड़कर सारा परिवार पहाड़ होता था।
बस अड्डे पहुँचते ही मेरी वो ज़िद्द,
चाचा चौधरी की किताबों के लिए कितना मैं रोता था।
सीटों को घेरने का हुनर बाहर हीे,
हर परिवार में ऐसा कोई न कोई छुपा रुस्तम होता था।
बस चलने का वो बेसब्री से इंतज़ार,
ग़ाज़ियाबाद पार कर खुली हवा का एहसास होता था।
रास्ते में भूख लगती थी सबको जब,
आलू की सब्जी और रोटी में भी गजब स्वाद होता था।
रामनगर से पकड़ना मासी की बस,
भतरोजखान पहुँचने तक मेरा बहुत बुरा हाल होता था।
खड़ा भी बहुत मुश्किल से हो पाना,
लेकिन रायता पकोड़ी खाने को बिल्कुल तैयार होता था।
भिक्यासेन से रामगंगा का बहना साथ,
भुमिया मंदिर देख मासी पहुँचने का एहसास होता था।
वो पुराने लकड़ी के पुल को पार करना,
अब तक बस घर पहुचने को हर कोई बेकरार होता था।
कच्चे टेड़े-मेडे रास्तों की खड़ी चढाई,
गाँव में परिवार के लोगों को भी हमारा इंतज़ार होता था।
चूल्हे की रोटी खेतों में भागना नदी में नहाना,
इन छोटी-छोटी बातों में ही दिन बिताना मज़ेदार होता था।
नानी के घर कुछ दिनों के लिए जाना,
ख़ास मेहमानों की तरह जहां अलग ही सतकार होता था।
पूरे दो महीनों की छुट्टियां बिता देना यूँ ही,
फिर याद आना स्कूल का काम ऐसा हर साल होता था।
अब कहाँ वैसी छुट्टियां और वो बचपन,
फ़िर भी दिल हर छुट्टी में पहाड़ जाने को बेकरार होता है।
August 3, 2016 Leave a comment
ख़ामोश हूँ
शब्दविहीन
जीवन क्या
अर्थहीन
ना उमड़ते
ख़्याल
कहाँ वो
सवाल
बस चलना
दिशाहीन
आसमाँ अब
मेरी ज़मीन।
#दिलसे
July 19, 2016 Leave a comment
तुम्हे ख़त्म करने से मतलब है,
हम हैं के बस निभाए जाते हैं।
तुम्हारी यादों के वो सब पल,
गुज़रे वक़्त से चुराए जाते हैं।
ज़ख्म रूह पे गहरे बहुत से हैं,
लेकिन हम मुस्कुराये जाते हैं।
अश्क़ गिरने को बस हैं तैयार,
और हम हैं कि दबाए जाते हैं।
#दिलसे
June 28, 2016 Leave a comment
तू मेरा हो ना सका ये मलाल रहा,
रात ख़्वाबों को तेरा ही ख़्याल रहा।
मुड़-मुड़ के उन्हीं राहों हो ताकना,
जहां अपना पिछला वो साल रहा।
कुछ नए से रास्तों में वो उलझ गया,
क़िस्मत का भी ये खूब कमाल रहा।
कब तक यूँ ही गुज़ारता मैं भी वक़्त,
लिखता रहा दिल का जो भी हाल रहा।
#दिलसे
June 17, 2016 Leave a comment
बरसना बेमौसम इन बूंदों का,
याद आना उसका वो पागलपन।
सिर्फ यादों से कहाँ बहलता,
अब मेरा ये पागल मन।
उसकी भीगने की वो ख़्वाहिश,
बूंदों का तन से होता मिलन।
मुस्कुराहट में ही उसकी सब पा लेना,
प्रीत की अदभुत सी चुभन।
नहीं वो पास अब तो बहते हैं,
इस बरसात से मेरे ये दो नयन।
#दिलसे
June 3, 2016 Leave a comment
आँखें मिलती हैं
लब मुस्कुराते हैं
उंगलियाँ चलती हैं
फ़ोन के कीपैड पर
इश्क़ आजकल
कुछ यूँ होता है।
नज़दीकियां बड़ती हैं
मुलाकातें होती हैं
हथेलियाँ टकराती हैं
लब थरथराते हैं
सेल्फियां ली जाती हैं
इश्क़ यूँ पनपता है।
रोज़ ही मिलने को
दिल मचलता है
बाहों में भरने की
ज़िद्द करता है
गूगल हैंगआउट्स पर
इश्क़ खूब उबलता है।
अनबनें होती हैं
टकरारों में दिन कटते हैं
अक़्सर कड़वाहटें इस
कदर तक बड़ती हैं
व्हाट्सएप्प पर ब्लॉक
इश्क़ यूँ तमाम होता है।
#दिलसे
May 25, 2016 Leave a comment
ठंडी हवाओँ से बात करना
नन्ही बूंदों को हथेली में समेटना,
इस बरसात में भाता बहुत है
बचपन की यादों को कुरेदना।
#दिलसे
May 16, 2016 Leave a comment
वो गुज़रती रही तूफ़ान सी,
मैं तिनके ही समेटता रहा।
रूह में मेरी उसके बसे थे जो,
ख़्वाब वो हर पल कुरेदता रहा।
बरसती रही वो रोज मूसलाधार सी,
नन्ही बूँद सा मैं पिघलता रहा।
सूरत कोई ना बची थी उसको पाने की,
फिर भी हर बार मैं मचलता रहा।
#दिलसे
India Bharat
aaj ki shairi
My honest take on personal excellence, a journey of becoming better version of myself through my experiences, interactions or readings!
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Exploring madness***
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The Shards of my Self