घर..मकान…
December 7, 2016 Leave a comment
बचपन जिस घर में बीता था,
भाइयों के लिए आज वो मकान हो गया।
#दिलसे
An expression of my thoughts and writer within….
December 7, 2016 Leave a comment
बचपन जिस घर में बीता था,
भाइयों के लिए आज वो मकान हो गया।
#दिलसे
December 7, 2016 Leave a comment
मुस्कुरा देता है वो बचपन रात मुझे देखकर,
सुबह बहुत नाराज़ था जो।
#दिलसे
December 4, 2016 2 Comments
किताबों में मुझे पढ़ रही होगी
मेरे ख़्वाबों से शायद लड़ रही होगी
पा लेना मुझे मुश्किल भी न था
ख़ुद से अब वो बहुत झगड़ रही होगी।
#दिलसे
August 3, 2016 Leave a comment
ख़ामोश हूँ
शब्दविहीन
जीवन क्या
अर्थहीन
ना उमड़ते
ख़्याल
कहाँ वो
सवाल
बस चलना
दिशाहीन
आसमाँ अब
मेरी ज़मीन।
#दिलसे
June 4, 2016 Leave a comment
इन आँखों में अभी पानी संभाले रखना,
बहुत सी कहानियाँ तुम्हे सुनानी बाकी हैं।
#दिलसे
June 4, 2016 Leave a comment
कुछ पन्नों में मेरा भी ज़िक्र है,
वो किताब जो तुमने कबसे नहीं खोली।
February 8, 2016 Leave a comment
ना पूछता कुछ ना ही कुछ बताता है
अपना हक़ भी अब नहीं जताता है,
मेरी तो बस आँखों में ही गुज़रती है
तू रात ऐ यार रोज़ कैसे सो पाता है।
#दिलसे
February 8, 2016 Leave a comment
एक दौर था जब आँसू भी मेरे ना वो देख पाते थे,
आलम ये है की ज़िगर का खून भी पानी नज़र आता है।
#दिलसे
February 6, 2016 Leave a comment
दिल अब कुछ यूँ जलने लगा है
सुरूर नशे में बदलने लगा है,
पीते थे कभी वक़्त बिताने को
हर दिन अब शराब में ढलने लगा है।
#दिलसे
February 5, 2016 Leave a comment
जिंदगी से मेरी बहुत दूर चले गए,
रोज़ फिर भी तुझे माँगता रहा।
कश्ती सा तू दूर कहीं बहता रहा,
और मैं वहीँ किनारे तलाशता रहा।
#दिलसे
January 27, 2016 Leave a comment
रात भर याद तुझे करता रहा
आग़ोश को तेरे तड़पता रहा,
तड़प ये उम्र भर की हो शायद
दिल फिर भी तेरे लिए मचलता रहा।
#दिलसे
January 27, 2016 Leave a comment
आँखों से आज फिर गुज़र रही है…
ये नींद भी कमबख्त रोज़ ही मर रही है।
#दिलसे
January 25, 2016 Leave a comment
सड़कों पर आज देख तिरंगा बिकता,
वतन फिर हमको याद आया है।
#दिलसे
January 20, 2016 Leave a comment
भीड़ में हैं अजीब तन्हाई है,
कैसी ये दुनिया हम ने बसाई है।
#दिलसे
January 16, 2016 3 Comments
हाँ मेरा तुम पर अधिकार नहीं
जीवन में अब वो रस-धार नहीं,
जिन आँखों ने स्वपन सजोये थे
उन नैनों में अब अश्रुधार सही।
इस हृदय ने चाहा था तुम्हे कभी
वो पल हर-पल जैसे हो यहाँ अभी,
मन ने कितने ही थे जो महल बनाये
पग-पग में सब बिखरे धूमिल यहीं।
इन हाथों में थामें हाथ तुम्हारा प्रिये
कितने ही मौसम दोनों हम संग जिए,
नक़्शे खींचे थे कुछ जीवन की राहों के
जुदा मंज़िलों पर हम फिर चल दिए।
तुम्हे समझा पाने के सब प्रयत्नों से
दूर निकल चली तुम मेरे जतनों से,
विजयी ध्वज कुछ फहराने थे पर
जीवन में अब हार मिली तो हार सही।
#दिलसे
January 10, 2016 5 Comments
गुज़रा तेरे शहर से…तो कुछ ख़त्म सा था,
आँख में आंसू की जगह…एक ज़ख्म सा था।
तुझे भुला देने के सिवा…कोई सूरत भी नहीं,
कभी जिंदगी में मेरीे…तू मलहम सा था।
December 31, 2015 Leave a comment
ये साल भी गया
तेरा ख़्याल ना गया
कल महकती रात में
मेरा एक और रुमाल गया।
#दिलसे
December 27, 2015 Leave a comment
आज की रात फिर से कहीं,
नींद चहलकदमी पर है।
कहो तो एक नया गीत,
तुम्हारे नाम लिख दूं।
शब्दों में ढ़ाल कर तुम्हे,
एक और नए रुप में देखूं।
मुस्कुराना तुम खुद को,
नया सा फिर से पा कर।
और मैं रात ख़्वाबों में,
एक बार फिर से तुम्हे देखूं।
December 25, 2015 Leave a comment
ज़रूरी है कुछ मुखौटे चेहरों पर यहाँ,
किरदारों को छुपा कर रखना ही मुनासिब है।
India Bharat
aaj ki shairi
My honest take on personal excellence, a journey of becoming better version of myself through my experiences, interactions or readings!
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लिखो, शान से!
जो जीता हूँ उसे लिख देता हूँ
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The Shards of my Self