मेट्रो
August 21, 2013 2 Comments
मेट्रो की भागती रफ्तार के उस पार,
इस बंद दरवाजे के बाहर झांक कर देखा।
तो लोगों की बेचैन कतार,
चंद छूटते स्टेशन और मंज़िल का इंतज़ार।
दरवाजे के इस पार दौडा के नजर देखा,
तो अगली मुलाकात का वादा करते थामे हुए हाथ।
हर रोज कुछ जानी पहचानी आँखो की मुलाकात,
और झट से बीत जाना चंद स्टेशनो का वो साथ।
कुछ खिलखिलाते चेहरे,
काफी संगीत में डूबे दिखे।
बातों में मशगूल कुछ,
और कुछ मनाते यार अपने रूठे हुए।
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