बारिशें
April 10, 2014 Leave a comment
अँधभक्ति का देखो कैसा है आलम,
हर किसी को भाया बस एक ही बालम।
बांधे आँख पर पट्टी भेडों की कतारें,
एक ही नाम की चीख-पुकारें।
दरकिनार कर कितने ही धुरंधर,
एक ही है यहां चौडे सीने का सिकंदर।
आलापना सिर्फ मैं-मेरा का राग,
अपने सिवा सबके माथे पर है दाग।
खुद को बेचने में करोडों फूंक डाले,
कहते हैं देश पूरा कर दो इनके हवाले।
नई सोच को झुठलाने की पुरजोर कोशिशें,
पर बादल घिर आऐ हैं तो होकर रहेंगी बारिशें।
(Inspiration – Current political situation in the country, and a huge population blindly following one man)