कहानी बची है…
February 8, 2015 Leave a comment
अभी बहुतों में देश के लिए दीवानगी बची है,
खून में बहुतों के आज भी रवानगी बची है।
क्यूँ वतन पर मर मिटने की बातें वो करते हैं,
हैरान हूँ क्या आज भी ऐसी जवानी बची है।
जज़्बा जूनून सरकारों से यूँ बेख़ौफ़ लड़ने का,
सीखा नहीं लगता इन्होंने फलसफा डरने का।
बिन हथियारों के कैसेे लोहा ये लिया करते हैं,
दीवानों की अनगिनत कतारों से हर राह सजी है।
कुछ खोने का डर फ़िक्र ना कुछ भी पाने की,
ठान बैठे हैं आज देश पर सब कुछ ये गवाने की।
कभी किताबों में जो सिर्फ हम पढ़ा करते थे,
कुछ सरफिरों ने वो क्रांति आज फिर से रची है।
सड़कों पर सुना वो आज भी निकल पड़ते हैं,
जुबाँ से उनके गीत सरफ़रोशी के उभरते हैं।
कुछ कर गुजरने की आग उनमे जलती है,
लिखने को अभी भी कहानी कोई बची है।